Author : Akhil Jain (editer)
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 136Page
Language : Hindi
List Price: Rs. 200
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साहित्य सृजन की प्रेरणा हो तो कही भी सृजन के आयाम स्थापित किये जा सकते हैं , फेसबुक से कई मित्र मिले हिंदुस्तान के कोने कोने के अलावा हिंदुस्तान के बाहर लेखनी के दर्शन कर अभिभूत हुआ... साहित्य की नवीन विधाएँ बारीकियां और भी बहुत कुछ सीख ही रहा था कि अचानक मोबाइल तकनीक पर एक और सन्देश प्रेषण पटल आया जिसे 'व्हाट्स एप्प' कहते है.... 'व्हाट्स एप्प' में जहाँ व्यक्तिगत संबंधो की चर्चाओ की आजादी है वही समूह का निर्माण कर बहुत से सदस्यों के साथ एक साथ बात करने की सुविधा भी.... अचानक बढ़ते चलन ने दिमाग में ख्याल आया कि बहुत सारे समूह 'व्हाट्स एप्प' पर है जो 'तुकांत विधाओ' के सृजन का कार्य कर रहे है... क्यों न 'छंदमुक्त विधा' / 'अतुकांत कविता' के सृजन पर भी एक समूह बनाया जाये... और इसे एक 'पाठशाला' की तरह उपयोग में किया जाये...और कर लिया एक रोज... 'छंदमुक्त पाठशाला' का निर्माण.... कुछ मित्रो की इजाजत से मैंने पाठशाला के नीव के पत्थर के रूप में पहले साथी परम स्नेही गोबिंद चांदना जी, सपना जी, राखी शर्मा जी, नीरजा जी अंशुल नभजी इन छह लोगो ने पाठशाला का बीज बो दिया... शुरू में 'छंदमुक्त पाठशाला' पूरे दिन चलती थी... पर, लोगो की व्यस्तताओं को देखते हुए इसे सांयकालीन पाठशाला में परिवर्तित एक निर्धारित समय मे लागू किया गया... हम चलते गए....कारवां बढ़ता गया... मित्र जुड़ते गए... और 'पाठशाला' साहित्य की खुशबू से महक गई.... प्रतिरोज एक दी हुई पंक्ति पर सबका सुन्दर लेखन मित्रो की स्नेह भरी टिपण्णी किसी परिवार से कम न लगी... सच अत्यंत गर्व होता है जब 'पाठशाला' के पटल पर होता हूँ... परिवार के सदस्य हंसी ठिठोली करते हुए... लिखते है, पढ़ते है... रूठना-मनाना बिलकुल एक 'शाला' के बच्चों की तरह...... हर एक सदस्य का सुख पाठशाला का सुख हर एक सदस्य का दुःख पाठशाला का दुःख... एक की ख़ुशी में 'पाठशाला' हंसती है तो किसी के दुःख में 'पाठशाला' रोती भी है.... और क्यों न हो परिवार जो है.... किसी ने किसी को न देखा हो शायद पर सबके दिलो से परिचित है सभी.... यहाँ न किसी की उम्र न किसी की कौम न किसी का पद.... सब एक ही है... पाठशाला के मोती.... पटल जब रोज रचनाओ से महकता है... तो उसकी खुशबु भी फैलनी ही चाहिए... यही एक छोटा सा उद्देश्य लिए, दिमाग में आया कि एक 'काव्य संग्रह' आना चाहिए पाठशाला के साथियो की रचनाओ का जो की ऐतिहासिक होगा क्योकि मेरी जानकारी अनुसार आज तक 'व्हाट्सएप्प' के किसी भी समूह का कोई काव्य संग्रह न आया... और विचार रख दिया पटल पर.... फिर क्या पाठशाला तो पाठशाला है... आ गई किताब... आ गया काव्य संग्रह..... जिसके आने की ख़ुशी को शब्दों में बांधना मुश्किल है........'अखिल जैन' (संपादक)
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 93-84236-92-6 |
Number of Pages | 136 |
Publication Year | 2015 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-93-84236-92-2 |
Binding | Paperback |
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