Author : Kripa Shanker Sharma 'shool'
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 56Page
Language : Hindi
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‘बोलते होंठ पत्थर के’, बात ही कुछ ऐसी है। जो स्थान हमने आज तक देखा नहीं उस पर इतना लिखा गया कैसे ? ये समझ से परे है ‘पत्थर के होंठ बोले’ यह कल्पना है या वास्तविकता ? यह एकनिष्ठ भाव की परिणिति है जिसे माँ वाणी ही दिखा सकती हैं, सुना सकती हैं, लिखा सकती हैं। मेरे एक कवि मित्र हैं अशोक ‘मथुरिया’ वे खजुराहो के मन्दिर देखकर आये थे और दुकान पर सुस्त बैठे थे । पूछने पर बताया कि मैंने मन्दिर के पृष्ठ भाग में एक सद्धःस्नाता मूर्ति का भग्नावशेष देखा और लगा कि वह कह रही है अब आये हो ? आप कहा करते हैं कि जहाँ पर बैठकर कवि लिखता है श्रोता वहीं पर बैठकर सुने तभी समझ सकता है। अब मैं जहाँ देखकर आया हूँ वहाँ बैठकर आप लिखें । बड़ा टेढ़ा प्रश्न था। मैं घर आकर माँ वीणापाणि के सामने बैठ गया बिना कुछ कहे सुने। अहेतु कृपाकत्र्री अन्तर्यामी माँ द्रवित हो उठीं और बोल उठीं, मैं लिख उठा। नित्य प्रति जाकर ‘मथुरिया’ से पूछता क्या ऐसा ही था वे कह देते हाँ। इसी प्रकार से क्रम चलता रहा माँ बोलती रहीं मैं लिखता रहा। फलस्वरूप माँ की कृपा का यह प्रसाद ‘बोलते होठ पत्थर के’ आपके सामने है।
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 93-84312-44-4 |
Number of Pages | 56 |
Publication Year | 2015 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-93-84312-44-2 |
Binding | Paperback |
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