Author : Kripa Shanker Sharma 'shool'
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 80Page
Language : Hindi
List Price: Rs. 150
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झरबेरी के’, के पश्चात माँ वीणापाणि का प्रसाद ‘ख़ामोश! अदालत जारी है’ आपके समर्थ करों में सौंपते हुए आशान्वित हूँ कि आप इसे भी अपना स्नेहिल सम्बल प्रदान करेंगे। जैसा कि मैं सदैव कहता आया हूँ इन समस्त कृतियों में अपना कुछ भी नहीं है, मैं तो मात्र लिखने वाला हूँ, माँ बोलती है मैं लिखता हूँ। इसमें आपको कुछ भी रुचिकर प्रतीत हो तो माँ को नमन करना और त्रुटियों के लिए मुझे अल्पज्ञ समझ कर क्षमा कर देना। इस कृति में ‘मैंने अब तक जो कुछ देखा जो पाया है, उसका ही प्रतिविम्ब हमारे गीतों में आया है’ ‘मैंने कलियों की पँखों में विष के बीज पनपते देखे और बागवाँ की आँखों में भाव स्वार्थ पलते देखे’ ‘पनघट पर प्यासे को मैंने तड़प तड़प भरते देखा है’ भावुक हृदय पुकार उठता है ‘यह कैसा स्वर्णिम प्रभात है’ ‘सम्बंधों की बात करो मत सोई पीर जाग जाती है’ ‘भावावेष में पूछ बैठता है चेतावनी स्वरूप’ ‘अपने उदयकाल में जिसने पक्षपात बरता हो अस्त समय में ऐसे रवि को कौन प्रणाम करेगा।’ इसमें जीवन, अभाव, चिंता, मृत्यु, चिता और शमशान भूमि जैसी कृतियों के साथ समाज के हर पहलू में झांका गया है। चाहे वे बूढ़े बैल और गाय हों, चाहें डाॅक्टर का अस्पताल हो, चाहे कवि हो, श्रोता हो, क्रेता हो, विक्रेता हो, वकील हो, गवाह हो, न्यायाधीश हो, पथ प्रदर्शक हों अथवा पथ भ्रष्टा, सभी से मिला हूँ कविता के माध्यम से। आपसे भी जुड़ रहा हूँ। यदि संयोग से किसी को अपने ऊपर व्यंग लगे तो मैं पूरे हृदय से कहता हूँ यह किसी भी व्यक्ति विशेष पर न होकर प्रवृति दोष पर है।
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 93-84312-46-0 |
Number of Pages | 80 |
Publication Year | 2015 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-93-84312-46-6 |
Binding | Paperback |
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