Author : Dinesh Chandra Pathak
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 128Page
Language : Hindi
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हिन्दू धर्मग्रन्थों में कई स्थानों पर संगीतमय उत्सवों तथा पात्रों का वर्णन आता है। इनमें से कई पात्र तो ऐसे हैं जिन्होंने संगीत में कई युगान्तरकारी सकारात्मक परिवर्तन किये तथा एक प्रकार से तात्कालिक संगीत के पर्याय ही बन गये। उदाहरण के लिये श्रीमद्भागवत्महापुराण के मुख्य पात्र श्रीकृष्ण ने वंशीवादन में ऐसी दक्षता प्राप्त की कि उनका नाम ही मुरलीधर पड़ गया। आज भी विभिन्न मन्दिरों में इनका यही स्वरूप विद्यमान है। इसी प्रकार नाट्यशास्त्र के जनक बह्मा, जगत में ताण्डव नृत्य के प्रवर्तक भगवान शिव तथा संगीत की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती भी ऐसे ही संगीत मर्मज्ञ पात्र हैं जिनका वर्णन सभी धर्मग्रन्थों में अत्यंत भक्ति एवं श्रद्धा के साथ किया गया है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध ’’हिन्दू धर्मग्रन्थों में संगीत‘‘ विभिन्न हिन्दू धर्मगं्रन्थों के आधार पर भारतीय संगीत की उत्पत्ति तथा उसके क्रमिक विकास के बारे में जानने का एक विनम्र प्रयास है। जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि धार्मिक ग्रन्थों में अधिकांश पात्रों एवं घटनाओं का वर्णन अत्यन्त ही चमत्कारिक रूप से किया गया है अतः विभिन्न तथ्यों एवं विचारों की पुष्टि हेतु संगीत से सम्बन्धित अन्य भारतीय ग्रन्थों के उद्धरण भी आवश्यकतानुसार लिये गये हैं। क्योंकि हिन्दू धर्मग्रन्थों में संगीत हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों का क्षेत्र अपने-आप में अत्यन्त विस्तृत है अतः हो सकता है कि इसमें कुछ तथ्य अथवा पहलू छूट जायें फिर भी इस आशा के साथ कि यह पुस्तक ’’हिन्दू धर्मग्रन्थों में संगीत‘‘, आगामी शोधार्थियों में एक रुचि अवश्य उत्पन्न करेगी
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 978-93-84236-99-1 |
Number of Pages | 128 |
Publication Year | 2016 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-93-84236-99-1 |
Binding | Paperback |
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