Author : Dr. Kailash Chand Sharma 'shanki'
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 96Page
Language : Hindi
List Price: Rs. 200
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जिन्दगी एक अकेले इन्सान के साथ कभी नहीं चलती क्योकि जिन्दगी मे साँझा, सहयोग एवं परस्पर आसरा अत्यावश्यक होता है। इसलिए किसी भी प्रकार का वैमनस्य भुलाकर एक दूसरे के संग एक दूसरे की परवाह करके एक दूसरे के प्रति अपने कत्र्तव्य को निभाना ही जीवन का सही निचोड़ यानि निष्कर्ष होता है। परिस्थितियो को दोष देने की अपेक्षा परिस्थितियो को समझकर चलना ही श्रेयस्कर होता है। आने वाली परिस्थितियो को भाँप लेना बुद्धिमता है क्यांेकि यही विवेकशीलता हालातांे को बिगाड़कर उसके पानी को सिर से ऊपर जाने की इजाजत नहीं देती। सम्बन्धो को बनाए रखना अथवा बिगड़े हुए सम्बन्धो का पुनर्निर्माण हमारे ही हाथ मे होता है। यदि विलगाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो वह कितना कष्ट दे सकती है इसका अन्दाजा तो सहने वाला ही लगा सकता है। अगर पूर्ण रूप से सम्बन्ध विच्छेद करने की नौबत आ जाती है तो सम्बन्ध विच्छेद करने वालो को अपनी-अपनी, अलग-अलग पहचान का सृजन करना पड़ता है अलग-अलग क्षेत्र मे । लेकिन हकीकत मे ऐसा हो नहीं पाता और मनुष्य मनोवैज्ञानिक दृष्टि से हमेशा अपने आपको रिश्तो मे सम्बन्धो मे बंधा हुआ पाता है। विच्छेद या अलगाव अगर पति-पत्नी मंे होता है तो यह शब्द, पीड़ा, दुःख एवं मानसिक तनाव का प्रतीक बन जाता है जिसका कुप्रभाव उन दोनो के साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्यांे को भी अपनी गिरफ्त मे ले लेता है। जीवनसाथी के बिछड़ने से घर परिवार का पूरा माहौल बदल जाता है और उस परिवार की पूरी कहानी उल्टफेर के चक्कर मंे पड़कर खत्म होने की कगार पर पहुंच जाती है। जीवन की इस हकीकत से कतई भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि पति-पत्नी जीवन रूपी रथ के दो पहिए होते है - उनमे आपसी तालमेल, सामंजस्य एवं समन्वय बनाए रखने का दायित्व पति-पत्नी दोनांे का हो जाता है। उन्है किसी भी कीमत पर एक दूसरे से विच्छेद की बनिहष्कादषुर्र बेटी कल्पना भी नहीं करनी चाहिए। उन्है अपनी चिन्ताऔ को एक दूसरे के समक्ष रखकर खुले हृदये से रखकर समझ कर मिल बैठकर उनका निवारण करना ही उनकी प्रसन्नता का सहारा और आसरा बन जाता है। उपन्यास मे मंजू अपने प्रेमी एवं पति विजय के साथ सुखमय जीवन व्यतीत करती है क्योकि वे अपनी समस्याऔ को समय-समय पर एक दूसरे के सामने रखकर तन-मन से हालातांे का सामना कर सामान्य परिस्थितियाँ बनाकर परस्पर सुधार लाना आवश्यक समझती है। ये बाते चित्रित करने का प्रयास किया गया है और जीवनसाथी से खुलकर बाते करके निश्चित रूप से समस्यो को सामना पीड़ादायक रूप मे ना करके अपने जीवनसाथी को अपने प्रेम मे सहभागिता को समर्थन देने का सन्देश दिया है।मे अपने लक्ष्य मे कहाँ तक सफल हो पाया हूँ इसका निर्णय तो पाठको के हाथो मे है। इस बारे मे अपने अमूल्य विचार भेजकर कृतार्थ करे। विपरीत परिस्थितियो से समझौता करना कितना सही है और सम्बन्धो को मधुर बनाये रखने के लिए परस्पर विचार विमर्श करना कितना सही है? जीवनसाथी के प्रति हृदय मंे जीम गलतफहमियो को समूल नष्ट करना और जिन्दगी के प्रेम समुद्र मे तब्दील करना कितना सुखमय होता है? यही इस उपन्यास का प्रतिपाद्य रहा है।
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 978-93-84236-50-2 |
Number of Pages | 96 |
Publication Year | 2002 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-93-84236-50-2 |
Binding | Paperback |
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