Author : Dr. Ram Bahadur Vyathit
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 260Page
Language : Hindi
List Price: Rs. 250
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सर्द हवाओं के आग़ोश में इठलाती वह 26 दिसम्बर 1994 की शाम..... श्रीकृष्ण इण्टर कालिज, बदायूँ का खचाखच भरा प्रांगण.... और उस प्रांगण में गीतों के सम्राट्, पद्मभूषण गोपाल दास नीरज विमोचन कर रहे थेμ डाॅ0 उर्मिलेश के प्रथम ग़ज़ल-संग्रह ”धुआँ चीरते हुए“ का। काव्य के क्षितिज को छूने की अदम्य लालसा रखने वाले..... देश के लाड़ले गीतकार..... यशस्वी ग़ज़लकार डाॅ0 उर्मिलेश के प्रथम दीवान का विमोचन और..... और शहर का कोई कवि, शायर या बुद्धिजीवी उस विमोचन-समारोह में उपस्थित न हो- यह कैसे मुमकिन था? कवि श्रेष्ठ गोपाल दास नीरज ने डाॅ0 उर्मिलेश के ग़ज़ल संग्रह की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हुए कहा- ”धुआँ चीरते हुए, संग्रह की ग़ज़लें इस धुंधुलके में मशाल का काम करेंगी और मानवीय मूल्यों का जो क्षरण हो रहा है, उसे रोकने में अपना अमूल्य योगदान देंगी।“ विमोचन-समारोह में अन्य आमन्त्रित विद्वज्जनों ने अपनी राय प्रस्तुत की। संयोग से मुझ अकिंचन को भी आमन्त्रित किया गया। उर्मिलेश मेरे प्राणों में रचे-बसे हुए थे। बस क्या था- मैंने ”धुआँ चीरते हुए“ की प्रशंसा में बोलना प्रारम्भ किया.... और बोलता ही गया..... संग्रह के कुछ चुनिंदा अश’आर भी प्रस्तुत किये..... संग्रह में अन्तर्निहित काव्य-सौष्ठव पर भी प्रकाश डाला। यह मेरा प्रथम प्रयास था- या कहिए.... डाॅ0 उर्मिलेश के प्रति उमड़ता हुआ भावातिरेक था.... बाद में काव्य-चेतना के सुधी संवाहक डाॅ0 उर्मिलेश ने अपने मद्दुर अन्दाज़ में कहा- ”भाई व्यथित जी!.... उस दिन भावावेश आप जो बोले थे- वह मैटर लिख कर लाइए।....“ बस यही मेरी प्रथम समीक्षा थी, जो ”सहकारी युग“ (रामपुर) में प्रकाशित हुई..... जिसे विद्वानों ने सराहा। स्रोतस्विनी को मार्ग मिल गया था..... अब उस स्रोत को अवढरदानी शिव की जटाओं का अमृत चाहिए था.... अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति-लब्ध कविवर डाॅ0 ब्रजेन्द्र अवस्थी ने मुझ अकिंचन को अपने काव्य ग्रन्थों की समीक्षा लिखने की प्रेरणा दी। यह उनके स्नेह की सीमा थी कि मैंने उनके कुछ ग्रन्थों की रचनाएँ चयनित व संकलित करके ग्रन्थ की भूमिका भी लिखी। देश के दो वरेण्य साहित्यकारों का वरदहस्त और अपरिमित स्नेह मुझे प्राप्त था- इसका प्रमाण यह है कि परम श्रद्धेय गुरुदेव डाॅ0 अवस्थी के सात अनमोल ग्रन्थों की समीक्षा लिखने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। कविवर्य डाॅ0 उर्मिलेश के नौ काव्य संग्रहों की समीक्षा लब्ध-प्रतिष्ठ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई तथा उनका आकाशवाणी से प्रसारण भी हुआ। परिणाम यह हुआ कि मुझ अकिंचन को हिन्दी-जगत् में एक समीक्षक के रूप में पहचान मिली, अन्यथा कविवर्य चन्द्रसेन विराट, डाॅ0 राम सनेही लाल शर्मा ‘यायावर’, रमेश नीलकमल, पं. सत्यधर शुक्ल, यशस्वी हाइकुकार नलिनीकान्त, आचार्य भगवत दुबे और हिन्दी-उर्दू पर समान अधिकार रखने वाले जनाब दिलकश बदायूनी के ग्रन्थों पर समीक्षा लिखने का दुस्साहस मैं कदापि नहीं कर सकता था। आज परिणाम यह है कि माँ भगवती की अनुकम्पा से इस अकिंचन की टेबिल पर देश के शीर्षस्थ रचनाकारों के अनमोल ग्रन्थ सुशोभित हो रहे हैं। स्वस्थ होने पर उन यशस्वी रचनाकारों पर मैं दो शब्द अवश्य लिखूँगा। वरेण्य रचनाकारों की शिकायत रहती है- मैं उनके ग्रन्थों की समीक्षा विलम्ब से प्रेषित कर पाता हूँ। इसका कारण यह है कि समीक्षा लिखने से पूर्व मैं ग्रन्थ का सांगोपांग अध्ययन करना अनिवार्य समझता हूँ। जब तक मैं उस वरेण्य रचनाकार की अन्तः प्रकृति, उसकी विचार-सम्पदा और चिन्तन की पृष्ठभूमि में डूब नहीं जाता, मैं समीक्षा लिखने का दुस्साहस नहीं करता। प्रमाण-स्वरूप द्रष्टव्य है- ग़ज़लों की समीक्षा ग़ज़ल की हसीनतरीन पृष्ठभूमि पर लिखी गई है। गेय गीतों की समीक्षा गीति काव्य के भाव-सौष्ठव पर आधारित हैं, राष्ट्रवादी चिन्तन से ओत-प्रोत, वीर रस-प्रधान काव्य ग्रन्थों की समीक्षा वीर रसाप्लावित भाषा-शैली में प्रस्तुत की गई हैं। विद्वत्समाज ने उन समीक्षाओं को अपरिमित स्नेह दिया, उन्हें हृदय से स्वीकारा- इसके लिए मैं हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। पचपन ग्रन्थों की समीक्षाएँ समवेत रूप में एक ग्रन्थ की शक्ल में प्रस्तुत करने का श्रेय मेरे परम स्नेही मित्रवर्य डाॅ0 इसहाक़ तबीब को जाता है। अस्त-व्यस्त पड़ी तमाम समीक्षाओं में से चयनित यह सुवासित सुमनांजलि प्रस्तुत करके डाॅ0 तबीब ने मुझ अकिंचन को गौरवान्वित किया है।
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 978-96-84312-45-9 |
Number of Pages | 260 |
Publication Year | 2017 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-96-84312-45-9 |
Binding | hard cover |
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