Author : Rahul Dav
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 124Page
Language : Hindi
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शेक्सपियर से आरम्भ करता हूँ, जिन्होंने कहा नाम में क्या रखा है? कहकर नीचे हस्ताक्षर कर दिए। संभवतः नाम में कुछ न रखा हो, परंतु नाम के बिना मनुष्य का जीवन, उसकी पहचान निर्मूल्य है। मुझे नाम नहीं कमाना, पर नाम से कुछ इनाम जुड़ जाए तो क्या बुरा है? मैं चाहता हूँ मेरे भाव पाठकों तक पहुंचे और उनके मन में कोलाहल उत्पन्न करें। जो पढ़े वो सोचने पर विवश हो जाए की मैं क्यों लिखता हूँ, क्या लिखता हूँ और कैसे लिखता हूँ। नाम की अपनी महिमा हुआ करती है। नाम से कोई अछूता नहीं। सबकी पहचान है, सबका नाम है। साहित्य में कविता का अपना विशिष्ट स्थान है, और कवि ही है जो अपने वैचारिक गर्भ से उसको जन्म देता है। पाठक और प्रकाशक उसको पालते-पोसते और बड़ा करते हैं। आलोचक का काम निःसंदेह परिष्कृत करना ही है। मैंने जिन कविताओं को अपनी कलम से, अपने वैचारिक गर्भ से जन्म दिया है, उनको आपके सुपूर्द कर रहा हूँ, अब इनको पालना-पोसना और बड़ा करना आपके हाथ है। यदि मेरी रचनायें इस योग्य हुई कि परिपक्व हो सकें, तो मुझे बहुत हर्ष होगा, समाज में ये न्याय कर सकेंगी तो ही मेरा नाम होगा, अन्यथा नाम में क्या रखा है। -राहुल देव
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 9-38-728915-X |
Number of Pages | 124 |
Publication Year | 2017 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-93-87289-15-4 |
Binding | paperback |
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