Author : Nasim Hashmi
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 118Page
Language : Hindi
List Price: Rs. 200
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जनाब ‘नसीम’ हाशमी साहब का मजमुअ़ा-ए-ग़ज़ल मेरे सामने है और मैंने उसका एक-एक शेर पढ़ा है । ‘नसीम’ साहब एक नेक दिल और पुर खुलूस इन्सान हैं । एक अच्छा इन्सान ही अच्छा शायर हो सकता है । उनके अशअ़ार उनके अ़ाली ज़र्फ़ होने की सनद हैं । जहां तक बात ग़ज़ल की है, चन्द अल्फाज़ की बन्दिश में मुकै़यद चन्द मिसरों का नाम ग़ज़ल नहीं है । ग़ज़ल उस खुशबू का नाम है जो इन्सान की रूह तक को ताज़ा कर जाती है, उस एहसास का नाम है जिसे छूकर चांदनी निखर जाती है। ‘नसीम’ साहब का यह शेर इस बात की मिसाल है- जो एक पल भी रुका नहीं था, हमारी चाहत की चाँदनी में, वो शर्मसारी की धूप में क्यों, अब अपने आंसू सुखा रहा है। मौजूदा ग़ज़ल में पिन्हा जदीद ख़्यालात की इमारत क़ दीमी क़मात की बुनियाद पर खड़ी है । यही ग़ज़ल का हक़ में बेहतमी है वरना ग़ज़ल के साथ ना इन्साफी होगी । ‘नसीम’ साहब ने भी अपने जदीद कलाम में ग़ज़ल की क़मत और तग़ज़्ज़ुल को बरकरार रखा है- क्या खूब मुनाफा है मज़हब की तिज़ारत में, इज़्ज़त में भी बरकत है और पेट भी पलता है।
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 9-38-728933-8 |
Number of Pages | 118 |
Publication Year | 2017 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-9-38-728933-8 |
Binding | hard cover |
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