Author : Dr. Shrikant Bhardwaj
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 100Page
Language : Hindi
List Price: Rs. 150
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गीता में कहा गया है ‘यदा-कदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः’- अर्थात जब-जब देश में धर्म का हृास होगा तब-तब एक महामानव उसकी रक्षा हेतु अवतरित होगा। भारत में 8वीं शताब्दी के बाद निरन्तर आक्रमणकारी आए, उन्होंने कत्लेआम मचाया, तलवार की नोक पर धर्म परिवर्तन कराया और जिन्होंने इनकी बात नहीं मानी उन्हें जिन्दा जला दिया। मानवता का इतना पतन इस्लाम के अलावा किसी अन्य धर्म में देखने को नहीं मिलता। क्रूरता का यह नंगा नाच आज भी हमें विश्व पटल पर दिखाई दे रहा है। सभी मुस्लिम देश आज अपने ही द्वारा पैदा की गई दहशतगर्मी में जी रहे हैं। ऐसे समय में डाॅ0 श्रीकान्त भारद्वाज द्वारा रचित महाकाव्य ‘गुरु गोविन्द सिंह’ का प्रकाशन प्रासंगिक है। महाकाव्य की रीति-नीति के अनुसार प्रथम मंगलाचरण लिखा जाना चाहिए । गुरु की अराधना करनी चाहिए । पर कवि ने यहां ‘समर्पण’ दिया है क्योंकि सिक्खों की बलिदानी परम्परा की गाथा लिखने जा रहे हैं, जो इनके प्रथम गुरु नानकदेव से प्रारंभ होकर दशम गुरु गोविन्द सिंह के बलिदान के साथ समाप्त होती है। प्रथम गुरु नानकदेव ने हिदुत्व का संगठन किया, इस्लाम से लड़ने को तैयार किया, क्योंकि इस्लाम कट्टर है- इसीलिए वे कहते हैं- ‘होते बड़े ही क्रूर थे इस्लाम के बन्दे, मजहब बना देता उन्हें था आंख के अंधे’ कवि ने प्रथम गुरु नानकदेव के पश्चात सीधे-सीधे अपनी लेखनी पांचवें गुरु अर्जुनदेव पर चलाई है- ‘गुरु ने शिष्यों को अस्त्र-शस्त्र धारण करना सिखलाया था, साहस देकर, हिम्मत देकर, भक्तों को वीर बनाया था’ भारतीयता शरणागत में विश्वास करती है इसीलिए उन्होंने ‘खुसरों’ को शरण दी। शिष्यों/भक्तों को निर्भीक बनाया। कवि ने बताया व जैसा इतिहास भी बताता है कि इस्लाम में कुर्सी के आगे सब रिश्ते खत्म हैं । न बेटा-बाप का, न बाप बेटे का- ‘आँखें निकाल कर खुसरों की तो नमक मिर्च था भरवाया, फिर स्वयं बाप ने बेटे को भाई के हाथों मरवाया । डा. रमासिंह सदस्य, केन्द्रीय हिन्दी समिति, भारत सरकार, नई दिल्ली
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 9384236764 |
Number of Pages | 100 |
Publication Year | 2015 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-93-84236-76-2 |
Binding | Hardcover |
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