Author : Vinay Bhart
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 96Page
Language : Hindi
List Price: Rs. 150
Selling Price
(Free delivery)
प्रस्तुत संग्रह में रचनाकार ने काव्य की विभिन्न विधाओं व विषयों को स्पर्श किया है। और ग़ज़ल हो गई... नाम हृदयस्पर्शी है। ग़ज़ल में जो तत्व आवश्यक होते हैं, वे सब स्वाभाविक रूप से यदि सम्मिलित हो जाएँ तो ग़ज़ल या कविता खुद-ब-खुद हो जाती है । जिसके लिए प्रयास नहीं करना पड़ता, वैसे ही जैसे झरने के प्रपात को प्रयास नहीं करना पड़ता। नैसर्गिकता प्रकृति व काव्य का सौंदर्य होता है, और यदि सायास कर्म हो तो ग़ज़ल को होना पड़ता है। ‘हो गई’ या होना पड़ता है का निर्णय पाठकों का विषय है। पाठकों की भी रुचि पृथक-पृथक होती है, जो रस व विधा एक को पसंद है। वह दूसरे पाठक को भी पसंद हो यह आवश्यक नहीं। इस दृष्टि से सभी रचनाकारों को पाठक मिल जाते हैं, जो रचनाकार का उत्साह भी बढ़ाते हैं किंतु अयोग्य पाठकों की प्रशंसा रचनाकार के लिए घातक होती है और ऐसे पाठकों से मिली प्रशंसा रचनाकार को आत्ममुग्ध बना देती है जो उसके लिए विचारणीय विषय है।
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 9-38-728971-0 |
Number of Pages | 96 |
Publication Year | 2018 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-93-87289-71-0 |
Binding | paperback |
© Copyrights 2013-2025. All Rights Reserved Uttkarsh Prakashan
Designed By: Uttkarsh Prakashan