Author : Snehlata
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 136Page
Language : Hindi
List Price: Rs. 250
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साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब ही होता है जिसके दर्पण में वही तस्वीरें उभर कर आती हैं जो समाज में बनती हंै और उसके पर्दें पर दिखाई देती हंै। समय बदलता रहता है। समाज के तौर तरीकों में परिवर्तन होता रहता है। समय आगे बढ़ता जाता है कुछ बातंे समय के साथ चलती रहती हंै और कुछ समय के साथ दौड़ में पीछे रहकर इतिहास बन जाती हैं जो प्राचीन हो जाती हंै। जो वर्तमान में रहती हंै वे अर्वाचीन कहलाने लगती हैं। इसी प्रकार साहित्य के युग भी बदलते गए उनके नामों में परिवर्तन आते गए। आज के साहित्य को आज के अर्वाचीन के आधार पर आधुनिक हिन्दी साहित्य के रूप में समय के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहा है। और जो पीछे छूट गए उनमें से हिन्दी साहित्य के एक काल के एक बहुप्रतिभा सम्पन्न कवि को तद्युगीन समाज का अध्ययन कर उसकी विवेचना के आधार पर उसका विश्लेषण इस पुस्तक में ‘कविवर वृंद के काव्य में प्रतिबिम्बित समाज’ के शीर्षक रूप में करने का प्रयास किया है, जो साहित्य के क्षेत्र में रीतिकाल के नाम से जाना जाता है।
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 938423673X |
Number of Pages | 136 |
Publication Year | 2013 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-9-38-423673-1 |
Binding | Paperback |
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