Uttkarsh Prakashan

Manjha


Manjha

Manjha (Paperback)

Author : Ravi Sharma Advocat
Publisher : Uttkarsh Prakashan

Length : 80Page
Language : Hindi

List Price: Rs. 150

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प्रारम्भ से ही भारत देश लोक कथाओं और किवदंतियों का देश रहा है। भारत में इतिहास को संजोने के लिखित एवं श्रुति दोनों विकल्प हमेशा से ही खुले रहे हैं। अगर हम यह कहें कि लिखित से अधिक श्रुति पद्धति प्रभावी रही है, तो शायद अतिशयोक्ति नहीं कही जाएगी। हमारे विद्वान लेखकों, कवियों ने इन एतिहासिक कथाओं, लोक कथाओं और किवदंतियों का समय-समय पर अपनी-अपनी मनोवृत्ति के हिसाब से संकलन-लेखन भी किया है। किन्तु भारतीय समाज के कथा प्रेमी होने के कारण कथाओं को अधिक रुचिकर बनाने के प्रयत्न में गायकों, कहानी वाचकों, कलाकारों, आदि ने मूल कथाओं को अपभ्रंश करके कथाओं के मूल अस्तित्व को ही समाप्त कर दिया है। भारत के गौरवमयी इतिहास में कई कथायें, कहानियाँ, किवदंतियां आज इस स्थिति में है कि उनके पुनः शुद्धीकरण के साथ लेखन की महती आवश्यकता है। जैसे महारानी कैकेई, रानी पिंगला, राजनर्तकी वासवदत्ता, नगरवधू चित्रलेखा, ढोला-मारू की कथा, नल-दमयंती की कथा आदि। इन सभी विषयों में से चुनकर मैंने इस खण्ड काव्य में नल-दमयंती की कथा को आधार बनाया है, वजह- बचपन से मैंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ढोला (गायन की एक विधा) गायकों से नल-दमयन्ती की कथा को श्रवण किया किन्तु जैसा कि हर कथा के साथ होता है पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोक गायकों ने उक्त कथा कों भी अतिशयोक्ति के सागर में इतना डुबो दिया कि भगवान वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत में किया गया नल दमयंती का चित्रण तो विलुप्त ही हो गया। इस कथा को चुनने का एक कारण यह भी है कि नल-दमयंती की जो सम्पूर्ण कथा लोक गायकों द्वारा गाई जाती है, महाभारत में मात्र मंझा (नल-दमयंती का प्रथम भाग) 3 उसके एक भाग का ही वर्णन मिलता है। और सम्पूर्ण कथा की कोई भी प्रमाणिक पुस्तक उपलब्ध नहीं है। यह कथा मात्र कुछ लोक गायकों द्वारा मौखिक रूप से सहेजी जा रही है। किन्तु जैसे-जैसे यांत्रिक युग आ रहा है, लोक गायकी को गाने-वाले और सुनने वाले शनैः शनैः कम ही होते जा रहे हैं। और मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि यदि हम इन कथाओं के बारे में समय से नहीं जागे तो यह शीघ्र ही विस्मृत हो सकती हैं । मैंने अपने इस प्रथम प्रयास में कथा कों नल-दमयंती में से राजा नल के माता-पिता और राजा नल के जन्म पर केन्द्रित किया है। मैंने पुरानी कथाओं में पाठकों की अभिरुचि बढ़ाने के निमित्त कथा कों जन साधारण भाषा में कहने की कोशिश की है। अधिक प्रयोग न करते हुये मैंने उक्त कथा का संयोजन दोहा और ताटंग छंद को आधार बना कर किया है। मैंने उक्त खण्ड काव्य की रचना करते समय यह भी ध्यान रखा है कि आवश्यकता पड़ने पर उक्त कथानक लोक गायकों द्वारा भी गायन योग्य बना रहे। मैंने इस कथा में पनपी सामाजिक भ्रांतियों एवं अति अतिशयोक्ति को भी कम करने का प्रयास किया है। मैंने प्रयास किया है कि उक्त कथा में सामाजिक साधारण रीति-रिवाज एवं व्रत-त्योहार भी वर्णित हो ताकि सनद रहे । मैं उक्त खण्ड काव्य की किसी पंक्ति कों उद्धरण करके किसी तरह की विशेषता नहीं दर्शाना चाहता हूँ , पूरा खंडकाव्य एक भाव में पिरोकर मैंने पठनीय एवं गवनीय बनाने का प्रयत्न किया है। पाठक न्यायाधीश होते हैं, खण्ड काव्य आपके हाथों में है, पढ़िये और फैसला कीजिये। मैं प्रशस्ति और आलोचना दोनों का सम्भाव से स्वागत करूंगा। -पं0 रवि शर्मा (एडवोकेट) कानपुर, उत्तर प्रदेश

Specifications of Manjha (Paperback)

BOOK DETAILS

PublisherUttkarsh Prakashan
ISBN-108-19-515853-6
Number of Pages80
Publication Year2021
LanguageHindi
ISBN-13978-81-95158-53-9
BindingPaperback

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