Author : Dr. Pradeep Upadhyay
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 96Page
Language : Hindi
List Price: Rs. 150
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देवास म.प्र. निवासी प्रबुद्ध डाॅ. प्रदीप उपाध्याय का पहला लघुकथा संग्रह ‘परख’ सामाजिक यथार्थ की परतों को ही नहीं खोलता, बल्कि उसकी दरारों को पारिवारिक, राजनैतिक, प्रशासनिक, मनोवैज्ञानिक अक्सों के साथ चित्रित करता है। यों देखा जाए तो शिल्प की दृष्टि से, तो कथाकथन की पारंपरिक वर्णनात्मकता कई लघुकथाओं में मौजूद हैं पर परवर्ती लघुकथाओं में संवाद शिल्प लेखक के सचेत विन्यास का संकेत करता है। डाॅ. उपाध्याय मूलतः व्यंग्यकार हैं, इसलिए इन परतों में जहाँ व्यंग्य को उभारते हैं, मन की भीतरी परतों में दोहरेपन को खंगालते हैं, प्रशासकीय चेहरों के भीतर की संवेदनहीनता को सामने लाते हैं। वहीं उनका कहानीकार कभी परिवेश चित्रण के मोह, कथाकथन के नरेटिव और कहीं-कहीं लेखकीय प्रवेश की अनदेखी भी कर जाता है। पर जीवन्त कथात्मकता का संवादी शिल्प जिन लघुकथाओं में बुना गया है, वे विन्यास की सजगता को दर्शाती हैं। इन लघुकथाओं में घटनाचक्र अनुभवजनित है। पर घटनाओं को लघुकथा की बुनावट में रूपांतरित करने की कल्पनाशीलता कथानकीय मोड़, पात्रों के द्वन्द्व, संवेदना के मनोजाल और लघुकथा को नुकीले अंत तक ले जाने की सजगता शुरुआती लघुकथाओं में भले ही कम दिखाई पड़ती हो, पर कई लघुकथाएँ आश्वस्त करती हैं कि उनमें व्यंग्य, तर्क, भाव तरल संवेदन, चरित्र का दोहरापन, आधुनिकता की सतही सोच, प्रशासकीय तंत्र की संवेदनहीनता, विस्थापन का दर्द, कृषक जीवन की व्यथाएँ, पारिवारिक समाजशास्त्र के बदरंग चित्र उभरकर आए और वे भी लेखकीय प्रवेश से मुक्त होकर पाठक से सीधा संवाद करें।
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 978-81-95158-57-7 |
Number of Pages | 96 |
Publication Year | 2021 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-81-95158-57-7 |
Binding | Paperback |
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