Uttkarsh Prakashan

Deh Yeh Kis Kaam Ki


Deh Yeh Kis Kaam Ki

Deh Yeh Kis Kaam Ki(Hardcover)

Author : Dr. Ishwar Chand Gambhir
Publisher : Uttkarsh Prakashan

Length : 168Page
Language : Hindi

List Price: Rs. 250

Discount Price Rs. 200

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डाॅ. ईश्वर चन्द गम्भीर का समस्त रचनाधर्म लोक कला-संस्कृति एवम् समाज के लिए एकदम सही दिशा निर्देश पर आधारित है। युगदृष्टा स्वामी दयानन्द की निर्भीक सोच से अभिभूत डाॅ. ईश्वर चन्द गम्भीर के सृजन की विशेषता उनकी निम्न पंक्तियों में स्पष्ट झलकती है- मैं ‘गम्भीर’ द्वेष दहशत के झाड़ हटाने आया हूँ बिखरे हैं जो दूर तलक मैं उन्हें मिलाने आया हूँ। यही नहीं बल्कि आम आदमी के साथ संवाद से रचनाकर्म पर पड़ने वाले प्रभाव को यूँ व्यक्त किया- दो चार शब्द जोड़ के एक बात कही थी लोगों का प्यार क्या मिला एक शेर हो गया। रचनाधर्म को अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य बनाने वाले डाॅ. गम्भीर की पैनी नज़र उनकी रचना में मिलती है। अपनी किशोरावस्था में ‘ख़त’ की भूमिका का विश्लेषण इस प्रकार करते हैं- ‘मन मुस्काया, तन हर्षाया जब तेरा पहला ख़त आया ख़त में चेहरा देखा तेरा मिलने का अब मन है मेरा रह कर दूर बहुत पछताया।’ इतना ही नहीं प्यार की पावनता का वर्तमान भी उन्होंने अपनी रचना ‘आज का सच’ के माध्यम से व्यक्त किया है- ‘दिलों में दिल्लगी है प्यार कम है तभी तो बन्धनों की आँख नम है।’ प्रत्येक रचनाकार उद्देश्यपरक साहित्य-सृजन के लिए ही लेखनी उठाता है, गम्भीर जी ने स्वयं स्पष्ट किया है- ‘पीड़ायें समाज की हों चाहे कल आज की उनका अहसास सदा दिल में मैं पाता हूंँ भ्रष्टता और धृष्टता कुरीति गम्भीर फैली उठती हैं उंगलियां मैं लेखनी उठाता हूँ।’ अभिव्यक्ति में भाषा का महत्वपूर्ण स्थान होता है, प्रत्येक रचनाकार जितना उत्कृष्ट सृजन मातृभाषा में कर सकता है, उतना अन्य भाषा में नहीं।रचनाकार का देवनागरी लिपि के प्रति स्नेह निम्नानुसार स्वतः परिलक्षित है- ‘हिन्दी सरल, सहज, मृदुभाषा, कर्णप्रिय होती है भारत में वो रही सुरक्षित, सीप में ज्यों मोती है।’ हिन्दी काव्य मंच की स्थिति पर जब कवि-हृदय आहत होता है, तब अपने मन का सच कहना उसकी विवशता हो जाती है- ‘कविताएं जल रही हैं ग़ज़लें सुलग रही हैं गीतों की वेदनाएं सोती न जग रही हैं छींटाकशी है ज्यादा गाए कवि क्या बोलें मंचों पे सज रहे हैं चहुँदिश सियासी शोले।’ समाज में बढ़ती भ्रूण हत्याएं एवम् विषमतापूर्ण लिंगानुपात से विचलित रचनाकार समाज में बेटियों की स्थिति को चिन्ताजनक मानते हुए लिखता है- ‘एक तरफ गर्भ में मर रही बेटियाँ जो हैं जिन्दा यहाँ डर रही बेटियाँ।’

Specifications of Deh Yeh Kis Kaam Ki (Hardcover)

BOOK DETAILS

PublisherUttkarsh Prakashan
ISBN-1093-84312-43-6
Number of Pages168
Publication Year2016
LanguageHindi
ISBN-13978-93-84312-43-5
BindingHardcover

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