Author : Dakkad Farukhabadi
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 96Page
Language : Hindi
‘ज्ञान की ज्योति’ उत्तर प्रदेश के जनपद कन्नौज के छिबरामऊ कस्बे के निवासी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हाइकुकार कवि श्री सुरेश चन्द्र दुबे ‘धक्कड़ फर्रूखाबाद’ द्वारा रचित एक हिन्दी हाइकु संग्रह है। 5-7-5 अक्षर क्रम के सीमित कलेवर वाले जापानी छन्द हाइकु ने आज सारे विश्व में अपना परचम लहरा दिया है। आज संसार की कोई भी भाषा ऐसी नहीं बची है जिसमें हाइकु लेखन न हो रहा हो। कविवर श्री धक्कड़ फर्रूखाबादी कवि मंचों पर तो हास्य व्यंग्य के कवि के रूप में चर्चित हैं किन्तु वे वास्तव में गंभीर कविताओं के रचनाकार भी हैं। गीत, गजल, मुक्तक, छन्द, बाल साहित्य और हाइकु पर आपकी अच्छी पकड़ है। अन्य विधाओं में कविता लिखते-लिखते धक्कड़ जी को जापानी काव्य विधा ‘हाइकु’ ने भी प्रभावित किया और वे हाइकु की अतल गहराइयों में उतरने को तैयार हो गये। परिणामस्वरूप उन्होंने छह सौ से अधिक हाइकुओं की रचना कर डाली । कोई कवि जब हाइकु लेखन से जुड़ता है तो पहले वह मात्र 5-7-5 अक्षरों के ढांचे को ही हाइकु समझ बैठता है और एक श्वांसी गद्य को तीन टुकड़ों में विभाजित कर हाइकु के ढांचे में जड़ देता है। कवि का अर्जित ज्ञान हाइकुओं का स्वरूप पाने लगता है और शुरूआत में कवि अनेक प्रचलित कहावतों, मुहावरों तथा सूक्तियों को हाइकु का स्वरूप प्रदान कर देता है। ऐसे हाइकुओं में मौलिकता का सर्वथा अभाव देखने को मिलता है किन्तु जब हाईकुकार हाइकु की गहराई में उतरता है और उसके उद्भव, विकास तथा भावगत एवं शिल्पगत सौन्दर्य से अवगत होता है तब उसके हाइकु मौलिकता से परिपूर्ण होने लगते हैं और वे कालजयी बन जाते हैं। धक्कड़ जी ने भी हाइकु लेखन में अभी जल्दी ही कलम चलाना शुरू किया है इसलिए उनके इन प्रारम्भिक हाइकुओं में क्रमिक परिवर्तन देखने को मिलता है। कोई भी रचनाकार अपनी निरंतर साधना से क्रमिक परिवर्तन के माध्यम से ही उच्चता के सोपानों पर चढ़ता है। धक्कड़ जी भी निरंतर प्रयत्नशील हैं और सफलता के उच्च शिखर पर चढ़ने का माद्दा रखते हैं। हाइकु 5-7-5 अक्षर (वर्ण) क्रम का मात्र 17 अक्षरीय छन्द है जो तीन पंक्तियों में लिखा जाता है और यह विश्व की सबसे छोटी कविता के रूप में स्वीकारा गया है। यहां यह बता देना आवश्यक है कि मात्र 5-7-5 वर्णक्रम का ढांचा ही हाइकु नहीं हो जाता। हाइकु तो वह तभी बन पाता है जब उसमें भाव पक्ष की दृष्टि से गागर में सागर भरने वाली बात हो । ‘हाइकु’ का जापानी भाषा में अर्थ ‘नटभंगी’ या ‘नटभंगिया’ या जल्दी की कविता होता है। जापानी भाषा या अन्य विदेशी भाषाओं में 5-7-5 के वर्णक्रम की बजाय 5-7-5 के ध्वनिघटक क्रम में हाइकु लिखे जाते हैं। विश्व की अन्य भाषाओं में हाइकु का स्वरूप कुछ भी हो किन्तु भारत में हिन्दी व अन्य भाषाओं में 5-7-5 के अक्षर क्रम को ही सार्वजनिक मान्यता मिली हुई है। जापान में हाइकु के विषय प्रकृति और अध्यात्म होते थे किन्तु भारत में आने पर यह सभी बन्धनों से मुक्त हो गया है और विषय विस्तार पा गया है। भारत में हाइकु के लिए कथ्य की कोई सीमा नहीं है। भारतीय हाइकु में धर्म, दर्शन, नीति, प्रकृति, श्रंगार, मानव मूल्यों के प्रति सजगता, कर्तव्य परायणता का पाठ, मानवीय संवेदना यथार्थ, आदर्श, समस्याग्रस्त, तनावग्रस्त, दीन, निर्बल, पीड़ित, शोषित, दलित, नारी तथा भले आदमी के प्रति सहानुभूति और श्रद्धा का भाव, बुरे आदमी के प्रति आक्रोश, साहसी के प्रति श्रद्धा, ईमानदार का गुणगान, बेईमान को दण्ड, भ्रष्टाचार के प्रति आक्रोश, व्यभिचार, बलात्कार, समलैंगिकता, चोरी, लूट, डकैती, अपहरण, तश्करी, आतंक, हत्या, अंडरवल्र्ड, गंुडई, भय, जातिवाद, भाई भतीजावाद के प्रति घृणा, विधवा विवाह व परित्यक्ता विवाह की स्थापना, अन्तर्जातीय विवाह को बढ़ावा आदि विषयों पर खूब लिखा जा रहा है। हाइकु क्या है, इसका स्वरूप क्या है, इसका कथ्य एवं शिल्प क्या है। यह जानने के लिए कुछ प्रख्यात हाइकुकार विद्वानों के हाइकु के सम्बन्ध में विचार उदृधृत करना समीचीन रहेगा। डाॅ0 भगवत शरण अग्रवाल का कहना है- ‘‘कला की सशक्त जीवनोन्मुखी प्रभावशाली मूर्त अभिव्यक्ति साहित्य है। साहित्य में निहित ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ की संगीतात्मक अभिव्यक्ति कविता है और कविता के सार्थक सारतत्व का सफल सांकेतिक रेखांकन हाइकु है।’’ डाॅ0 कुंवर बेचैन कहते हैं- ‘‘हाइकु की तीन पंक्तियां एक ही हाइकु के तीन महत्वपर्ण अटूट और जीवन्त हिस्से हैं। वे तीनों मिलकर एक जीवन्त शरीर हैं, जिनमें एक ही विचार, एक ही भाव, एक ही घटना का रक्त दौड़ता है और एक ही दिल धड़कता है।’’ डाॅ0 मिथिलेश दीक्षित का मानना है- ‘‘हाइकु केवल तीन पंक्तियों और कुछ अक्षरों की कविता नहीं है बल्कि कम से कम शब्दों में लालित्य के साथ लक्षणिक पद्धति में विशिष्ट बात को व्यक्त करने की एक प्रभावपूर्ण कविता है।’’ डाॅ0 रमाकान्त श्रीवास्तव कहते हैं- ‘‘प्रभावी, मर्मस्पर्शी और कालजयी हाइकु की रचना वही कवि कर सकता है जो अनुभव से सम्पन्न हों, जिसकी दृष्टि व्यापक हो, जिसे सूत्र में अपनी अभिव्यक्ति को समेटने की कला में सिद्धि प्राप्त हो।’’ डाॅ0 सुन्दरलाल कथूरिया का कहना है- ‘‘भारत ने जापान तक बुद्ध के दिव्य सन्देश पहुंचाए थे और जापान के दार्शनिक कवियों ने हाइकु को सहृदय भारतीय कवियों तक पहुंचा दिया। डाॅ0 उदयभानु ‘हंस’ हाइकु में तुकबन्दी पर चर्चा करते हुए कहते हैं- ‘‘हाइकु में तुकबन्दी आवश्यक नहीं है परन्तु लयात्मकता से रोचकता आ जाती है, इसलिए हाइकु में कवित्व होना आवश्यक है।’’ डाॅ0 कमल किशोर गोयनका का मानना है- ‘‘हाइकु मूलतः अनुभूति की कविता है। मानव मन जब घनीभूत अनुभूतियों से आवेगमय होता है तथा उसमें सूक्ष्म से सूक्ष्म आवेग अभिव्यक्ति के लिए व्याकुल होते हैं तो हाइकु का जन्म होता है। डाॅ0 जगदीश व्योम का कथन है- ‘‘कार्य की व्यस्तता के मध्य हाइकु ही एकमात्र ऐसी कविता है, जिसका सृजन किसी अन्य कार्य में बाधक नहीं बनता। दूसरे एक अच्छा हाइकु मन पर गहरा असर करता है।’’ नलिनीकान्त का मानना है- ‘‘हाइकु प्राकृतिक सौन्दर्य की कमनीय, रमणीय और कोमल सुकुमार कविता है। श्री पारस दासोत हाइकु काव्य पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं- ‘‘हाइकु काव्य इस संसार के हर क्षण को जीने की क्षमता रखता है। मानव के साथ हर क्षण खड़े होने की पात्रता रखता है।’’ प्रस्तुत कृति के हाइकुकार श्री सुरेश चन्द्र दुबे ‘धक्कड़ फर्रूखाबादी’ एक आशावादी रचनाकार हैं। वे आशा और निराशा को जीवन की परिभाषा मानते हैं तथा आशा को जीवन व निराशा को मृत्यु के समान मानते हैं। उनके निम्नलिखित हाइकुओं में उनका यह भाव दृष्टव्य है- आशा निराशा आशा जीवन हमारे जीवन की निराशा को समझो है परिभाषा । मृत्यु समान । जीवन जीना भी एक कला है और इस कला को जो सीख लेता है वही सफल हो जाता है। संसार में जीवन के आवागमन का क्रम सतत् चलता रहता है। जीवन के अज्ञानरूपी तम को हटाने के लिए ज्ञानरूपी ज्योति जलाने की आवश्यकता है। जीवन संबंधी इन भावों को धक्कड़ जी के हाइकुओं में भी देखा जा सकता है- जीने की कला आवागमन ज्ञान की ज्योति जिसने सीख ली जीवन का है क्रम जीवन में जलाओ वही सफल । सदा चलेगा। तम हटाओ ।
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 93-84312-52-5 |
Number of Pages | 96 |
Publication Year | 2015 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-93-84312-52-7 |
Binding | Hardcover |
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