Author : Dr. Chandraveer Jain.
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 128Page
Language : Hindi
कालिदास ने सौन्दर्य का, आकण्ठ एवं आ प्राण, आस्वादन किया था, किन्तु मूल्यों की तुला पर उसे कभी अत्यधिक महत्व नहीं प्रदान किया। सौन्दर्य सागर के सम्पूर्ण आवर्त-विवर्तों में पाठक अथवा भावक को निमज्जित कराकर, कालिदास उसे शिवं के पुनीत आदर्श-लोक की ओर मोड़ देते हैं और अन्ततः लौकिक प्रेयस् के ऊपर पारलौकिक श्रेयस् का अमर संदेश सुना जाते हैं। ‘मेघदूत’ कालिदास की रसोद्गारि-गिरा का सर्वोत्कृष्ट प्रसाद है। मनुष्य एवं प्रकृति का जो अद्वैत इसमें स्थापित हुआ, वह साहित्य में एकदम निराला है। उस अद्वैत की प्रतिष्ठा का सूत्र ‘काम’ निरूपित हुआ है जो सृष्टि के यावत् सम्बन्धों को गीला और लचीला बना देता हैं। ‘कामरूप’ मेघ और ‘कामुक’ यक्ष ये दोनों मिलकर मानों सम्पूर्ण जगती को काम के पावन पीयूष प्रवाह में निमज्जित कर गए हैं। ‘काम’ चैतन्य की वृत्ति हैं और ‘प्रेम’ उसका प्रकाश है। इस प्रकाश का स्वभाव ही है राशीभूत होना तथा चित्त को द्रवित कर वह अमोघ रसायन प्रस्तुत करना जो चेतन एवं अचेतन की द्वैत-भावना को नष्ट कर, समस्त विश्व की धमनियों में समरसता का द्रव प्रवाहित कर देता है। ‘मेघदूत’ के अमर माधुर्य का रहस्य यही
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 9-38-423662-4 |
Number of Pages | 128 |
Publication Year | 2017 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-9-38-423662-5 |
Binding | Hard cover |
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