Author : Ch. Bijendra Dev Singh Dhirana
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 96Page
Language : Hindi
List Price: Rs. 250
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हिन्दू समाज प्रायः विधर्मी, नारी और दलित (जिनमें आदिवासी भी हैं) के शोषण, दमन में रत रहा है। यूँ आदर्श में अपने को परम सहिष्णु मानते हुए भी। बुद्ध भगवान के युग से आज तक जाति-वर्ण की वीभत्सता को मिटा नहीं पाया है। पश्चिम के प्रभाव में तथा बौद्धिक रूप से जागरुक स्वतंत्र चिन्तन करने वाले तर्कशील स्वर्णों के द्वारा चलाये आन्दोलनों ने इस समस्या का समाधान करने की कोशिश की अवश्य, पर कलंक पूर्णतः मिटा नहीं। इसी पृष्ठभूमि को लेकर प्रबुद्ध एडवोकेट चै. ब्रिजेन्द्रदेव सिंह धीराणा ने डाॅक्टर भीमराव अम्बेडकर के जीवन को केन्द्र में रखकर ‘बाल भगवान अम्बेडकर’ नाटक की रचना की है, किस प्रकार एक वीभत्स काल के घृणित तम परिवेश में जीकर अपनी हर इच्छा शक्ति और आत्मविश्वास के बल पर डाॅ. अम्बेडकर उत्थान के उस शिखर पर जा पाये, जहाँ एक दो ही अन्य दलित सफल हुए हैं, नाटक परम्परागत अंकों में विभाजित न होकर छब्बीस दृश्यों में लिखा गया है। सरल सम्प्रेषणीय भाषा में। नाटक को पढ़कर एक जिज्ञासा मन में अवश्य उठती है कि अगर महाराजा गायकवाड़, कृष्णदेव केलुस्कर और उनके वह ब्राह्मण गुरु, जिन्होंने अम्बेडकर गोभ (जो उनका था) प्रेमपूर्वक न देकर भीमराव नामक दलित युवक की सहायता न की होती, तो क्या भारत एक अनमोल रत्न से वंचित रह जाता। यह कथा अम्बेडकर के साथ-साथ उन उदात्त सवर्णों की भी है। जिन्होंने अपने वर्ग के विरोध में जाकर न्याय की लड़ाई में भागीदारी निभाई। यह नाटक सवर्ण और शूद्र की रेखा को मिटाकर समस्त समाज से सामूहिक संघर्ष की प्रेरणा देने की दिशा में एक प्रेरणात्मक प्रयास है जिससे एक समता मूलक समाज की रचना कर न्यायप्रिय देश बनाया जा सके। मूलतः असमानता के सिद्धान्त के आधार पर खडे़ हिन्दू समाज में जड़ मूल से क्रान्ति लाकर वह स्वप्न पूरा कर सकें जिसमें समाज शोषण-वर्ग-वर्ण-जाति-विहीन होकर शुद्ध मानवीय हो।
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 978-93-84312-16-9 |
Number of Pages | 96 |
Publication Year | 2016 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-93-84312-16-9 |
Binding | hardcover |
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