Author : Brij Raj Kishor Rahgeer
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 96Page
Language : Hindi
List Price: Rs. 150
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‘एक पन्ने पर कहीं तो’ काव्य संग्रह के बाद कवि श्री बृज राज किशोर ‘राहगीर’ की ‘लेखनी गोमुख बनी है’ नामक नवीन कृति स्वागत योग्य है, कई अर्थों में । इस अर्थ में विशेषतः कि कवि ने अपने पहले काव्य संकलन में स्वयं स्वीकार किया था कि उनकी काव्य-यात्रा आस्था और विश्वास के अप्रतिम शिखर से आरम्भ होकर जीवन की तपती पगडंडी पर झुलसते हुए भाग्यवाद की शरण में पहुँच गई । जहाँ वे यात्रा के प्रारम्भिक दौर में पूरे विश्वास के साथ कह रहे थे कि ‘भाग्य का निर्माण अपने हाथ में है’, कि ‘एक निष्ठा है मेरी श्रम को समर्पित। इसलिए ख़ुद भाग्य मेरे हाथ में है ।’ इतना ही नहीं उनका विश्वास था कि वे पर्वतों को झुका सकते हैं । ‘‘मैं मनुज हूँ आऊँ अपनी पर अगर तो स्वर्ग से सम्बन्ध भू का जोड़ डालूँ ।’’ वहाँ अनुभव की आग में झुलसते-झुलसते वे कह उठे, ‘‘दूर है मंज़िल अभी से पाँव क्यों रुकने लगे हैं । प्रार्थना में जुड़े हैं जो हाथ अब दुखने लगे हैं ।’’ इतना ही नहीं यथार्थ की भूमि पर उतरकर तो उन्होंने कह दिया, ‘‘जी रहा खामोशियों के बीच ही, एक दिन चुपचाप ही मर जायेगा ।’’ उनकी ‘अंजुरी भर चाहिये, सागर नहीं’ में व्यक्त थोड़ी सी प्यास बुझाने में भी बाधायंे हैं । किन्तु मुझे प्रसन्नता है कि वह नैराश्य मात्र क्षणिक विराम था । जैसा कि उन्होंने स्वयं अवकाश प्राप्ति के अवसर पर घोषणा की थी ‘‘चुक गया हूँ मैं, मुझे यह विष भरा विश्वास मत दो, दोस्तों कुछ दो न दो पर उम्र का अहसास मत दो।’’ और सचमुच ही वे तनिक विराम/विश्राम के बाद नई ऊर्जा, नई आस्था, नई उड़ान की चाह, नई उम्मीदें लेकर पुनः पूरे मन से जीवन-संग्राम में उतरे हैं ‘लेखनी गोमुख बनी है’ के साथ ।
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 978-93-84312-47-3 |
Number of Pages | 96 |
Publication Year | 2017 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-93-84312-47-3 |
Binding | paperback |
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