Uttkarsh Prakashan

Zindagi Ka Safar Rah Tanha


Zindagi Ka Safar Rah Tanha

Zindagi Ka Safar Rah Tanha (hardcover)

Author : Hari Om Singh ‘vimal’
Publisher : Uttkarsh Prakashan

Length : 112Page
Language : Hindi

List Price: Rs. 200

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चन्द ग़ज़लों की पहली किश्त हाज़िर है और इसी के साथ होता है हमारी शाइरी का औपचारिक आग़ाज़। मेरी नज़र में हमारे आसपास घटने वाली प्रत्येक घटना और उस घटना पर होने वाली प्रतिक्रियाओं से मन में होने वाली उथल-पुथल से शाइरी की ज़मीन तैयार होती है। इस उथल-पुथल को दिल की गहराइयों से महसूस कर लफ़्ज़ों में ढालना ही शाइरी है।ये सारी जद्दोजहद अगर अरूज में हो तो और बेहतर। बारिश में भीगते हुए अलमस्त परिंदे, इश्क़ की गिरफ़्त में बेसुध दीवाने, फूलों की मधुर मुस्कान, कोयल की कूक, बादलों के क़ाफ़िले, बचपन की सुहानी यादें मन को भाव विभोर कर देते हैं और यूँ ही बस यूँ ही हो जाती है शाइरी........ पर मेरे अल्फ़ाज़ तब ज्यादा मुखर हो जाते हैं जब देखता हूँ ......... किसी बेबस लाचार को गिड़गिड़ाते हुए। किसी मज़दूर को अपना परिवार पालने के लिए हाँफते हुए, पसीना बहाते हुए, मालिक की दुत्कार सुनकर थके पाँवों से लड़खड़ाते हुए। जब देखता हूँ किसानों को अधनंगे सर्दी गर्मी बरसात की परवाह किये बगै़र जी तोड़ मेहनत करते हुए, आवारा जानवरों द्वारा फली फूली फसल चैपट देख और क़ुदरत की मार से बर्बाद हुई फसल पर आँसू बहाते हुए, खुदकुशी करते हुए। जब देखता हूँ पढ़े लिखे बेरोजगार युवाओं के रोजी रोटी की तलाश में धक्के खा-खा कर बेनूर होते हुए चेहरे। जब देखता हूँ सियासी पाखण्ड जो भोली भाली जनता को अपनी सियासी स्वार्थसिद्धि के सामान से ज़्यादा कुछ नहीं समझते, जो हर चुनावी साल में करते हैं झूठे वादे और फेंकते हैं रियाया को फँसाने के लिए कोई नया चमचमाता हुआ जाल......... जब देखता हूँ मज़हबी आडम्बरों को जो नासूर हो गए हैं इस समाज और देश के लिए, जो सिर्फ अंधभक्त पैदा कर चलाते हैं अपनी-अपनी दुकानें और गुलछर्रे उड़ाते हैं सियासत से गलबाइयाँ करके.......... जब देखता हूँ खून पसीने से बनाये अपने ही घर में अपमान के घूँट पीते हुए असहाय बुज़ुर्गों को, अपनों की बेरुख़ी और अत्याचारों से बुढ़ापे में अपाहिज, बेघर, अनाथ हुए बुज़ुर्गों को ...... जब देखता हूँ छोटी-छोटी बच्चियों से दरिंदगी होते हुए और न्याय के लिए सालों साल लुटते हुए लोगों को .......... जब देखता हूँ ड्यूूटी पर जाते हुए फौजी भाइयों के बिलखते हुए परिवारों को और कभी-कभी तिरंगे में लिपटे हुए उनके जिस्म से लिपट कर दहाड़ें मारते हुए परिजनों को ........ जब देखता हूँ सब कुछ होते हुए और सबके होते हुए ज़िन्दगी के सफ़र को तन्हा महसूस करते हुए, अरमानों का खून होते हुए ......... हाँ दोस्तों और भी बहुत कुछ है जिसे देख कर, याद कर, महसूस कर मुखर हो जाते हैं मेरे अल्फ़ाज़ ......... सिसकियाँ मजबूरियाँ ज़ज़्बात कागज पर ‘विमल’, आह सूनापन उकेरूँ मैं कोई शाइर नहीं। -हरि ओम सिंह ‘विमल’

Specifications of Zindagi Ka Safar Rah Tanha (Hardcover)

BOOK DETAILS

PublisherUttkarsh Prakashan
ISBN-10978-93-89298-85-7
Number of Pages112
Publication Year2020
LanguageHindi
ISBN-13978-93-89298-85-7
Bindinghardcover

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