Author : Dr. Ishwar Chand Gambhir
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 100Page
Language : Hindi
List Price: Rs. 150
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मेरठ निवासी डाॅ. ईश्वर चन्द्र ‘गंभीर’ की रचनाएँ कसौटी पर खरी उतरती हैं। पूर्व में प्रकाशित गंभीर जी की 18 कृतियाँ इसका जीवंत प्रमाण हैं। उनके मुक्तकों के वाचिक संस्करण ‘माँ’ ने देश भर में ख्याति हासिल की है। अनेक पुरस्कार और सम्मान उनके खाते में जुड़े हैं, लेकिन उनकी सादगी और सरलता ही उनकी पहचान है। वे सहज-सरल और नपे-तुले शब्दों में बड़ी से बड़ी बात कहने के लिए जाने जाते हैं। वर्तमान में काव्य के विकृत होते स्वरूप को लेकर चिंता उनकी रचनाओं में साफ नज़र आती है। वे मंचीय सियासत और लाइमलाइट से दूर रहकर काव्य साधना पसंद करते हैं। गंभीर जी के काव्य में वही होता है जिसकी देश और समाज के उन्नयन और विकास के लिए आवश्यकता है। विद्यार्थी जीवन से ही डाॅ. गंभीर जी का सानिध्य प्राप्त करता, उन्हें पढ़ता और सुनता आया हूँ। उनकी कृतियों में बात होती है वंचितों के हक़ की, पीड़ितों और शोषितों के लिए न्याय की, भारतीय संस्कृति के उत्थान की, पर्यावरण के संरक्षण की और उन आहों और कराहों की जो कभी होठों से फूट भी न सकीं। साम्प्रदायिक सद्भाव की भावना को जनमानस में भरने के लिए उनकी लेखनी से पावन शब्दों की धारा निर्झर होकर बहती है। ऐसे ही संदेश को प्रमुखता से संजोए उनकी एक कृति ‘खाइयाँ कैसे पटेंगी’ का हिन्दी से उर्दू में अनुवाद चैधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के उर्दू विभाग ने कराया है। उनकी इस कृति के लिए उत्तर प्रदेश उर्दू आकादमी, लखनऊ द्वारा उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। अपने ग़ज़ल संग्रह ‘ग़ज़ल से ग़ज़ल तक’ की इस माला में भी डाॅ. गंभीर जी ने ऐसे ही शुद्ध मोतियों को पिरोया है, जो मन को शीतलता प्रदान करते हैं। जानकारी देते हैं, नवीन ऊर्जा का संचार करते हैं, संबल बनते हैं और जागरुक करते हैं।
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 9-38-815501-7 |
Number of Pages | 100 |
Publication Year | 2021 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-93-88155-01-4 |
Binding | Paperback |
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