Author : Dilip Kumar Saxena
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 68Page
Language : Hindi
List Price: Rs. 100
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मुरदाबाद निवासी सेना में कुल्लू मनाली हिमाचल प्रदेश में कार्यरत श्री दिलीप कुमार सक्सेना की यह दूसरी पुस्तक है जिसे उत्कर्ष प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है जिसमे द्रोपदी की व्यथा कथा को खण्ड काव्य रूप में प्रस्तुत किया गया है..... कवि के शब्दों में .......बात बहुत पुरानी है उस समय मैं बरेली काॅलेज बरेली का छात्र था। बी.एड. डिपार्टमेन्ट में स्टडी कर रहा था। इस डिपार्टमेन्ट का मैं वाइस प्रेसिडेन्ट था। उस समय मेरा व्यवहार ‘आत्मप्रदर्शन’ प्रेरक से प्रेरित था। यह समय ‘किशोरावस्था’ का था तथा व्यवहार में थोड़ी उच्छृखलता एवं उदण्डता थी। यह मेरा सौभाग्य था कि उस समय श्री के.एल. शर्मा जी हमें ‘शिक्षा मनोविज्ञान’ पढ़ाते थे तथा वी.के. खरे महोदय हमें कई अन्य को-केरिकुलम एक्टीविटीज कराते थे। उस समय हमें डिबेट का एक टाॅपिक मिला था ‘प्राचीन काल में भारतीय महिलाओं की स्थिति’। इसके पक्ष तथा विपक्ष में डिबेट थी। मैंने इसके पक्ष में डिबेट की प्रस्तुति दी परन्तु विपक्ष में कोई भी प्रत्याशी न था, उस समय मैंने विपक्ष के लिए भी अपनी सहमति दी। ‘प्राचीन काल में महिलाओं की स्थिति’ के विपक्ष में बोलते हुए मैंने स्वरचित कविता की कुछ पंक्तियां भी प्रस्तु की तथा पहली बार ‘द्रोपदी’ के ऊपर लिखी गई मेरी पंक्तियां उस सभागार में वक्तव्य के रूप में बोली/उच्चारित की गईं। यहां से ही इस खण्डकाव्य का प्रारम्भ हुआ। उस डिबेट का अन्त मैंने इन पंक्तियों से किया था- ऐसा था तब का समाज, वह समाज क्या आएगा। नारी को निर्वस्त्र करने पर हमसे बेहतर कहलाएगा।। इसके पश्चात मैं एम.एड. करने के लिए हिन्दू काॅलेज मुरादाबाद आ गया वहां पर भी मैंने द्रोपदी पर लिखी कुछ पंक्तियों को सुनाया। इस खण्डकाव्य का प्रारम्भ बहुत पहले ही हो चुका था परन्तु मुझे इस पर मनन और अधिक लेखन का अवसर अपनी सेवानिवृत्ति के पश्चात ही प्राप्त हुआ। आज पाठकों को इस खण्डकाव्य को सौंपते हुए मुझे अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है। मैंने इसमें स्व. श्री श्यामनारायण पाण्डे जी (1907-1991) की शैली का अनुकरण भी किया है इसके लिए मैं उनको अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ। मैंने उनकी ओजस्वी भाषा-शैली को अपनाया है। द्रोपदी के पात्र के साथ मैंने महाभारत में वर्णित उनकी स्थिति के अनुसार ही अपने कथानक को रखा है। मेरे खण्डकाव्य की इस यात्रा में मेरी पुत्री श्रीमती स्तुति सक्सेना सिंह व उनके पति शिवेन्द्र प्रताप सिंह ने काफी सहयोग दिया। मैं हृदय से उनका आभार व्यक्त करता हूँ। मैं उत्कर्ष प्रकाशन के निदेशक श्री हेमन्त शर्मा जी के प्रति भी अपना साधुवाद एवं कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ कि उन्होंने इसके प्रकाशन के लिए मुझे प्रेरित किया व अपना सहयोग दिया। मैं श्रीमती अन्जना सक्सेना को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ जिन्हें मैंने अपना यह लघु प्रयास समर्पित किया है। -दिलीप कुमार सक्सेना
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 978-93-91765-73-6 |
Number of Pages | 68 |
Publication Year | 2023 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-93-91765-73-6 |
Binding | Paperback |
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