Author : Dr. Raj Kumar Garg (editer)
Publisher : Uttkarsh Prakashan
Length : 96Page
Language : Hindi
List Price: Rs. 100
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आज गद्य और पद्य की जितनी विधायें प्रचलित हैं उन सबके समुच्चयस्य को साहित्य की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। वस्तुतः साहित्य का व्युत्पत्ति पटक अर्थ ही है- ‘‘सहिते साहित्यम्’’ अर्थात जिसमें सबका मंगल हो, वह साहित्य कहलाता है। अखिल विश्व गायत्री परिवार शान्ति कुंज हरिद्वार के संस्थापक वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं0 श्रीराम शर्मा आचार्य का कहना था कि ज्ञानी वह नहीं है, जिसने बहुत सी पुस्तकें पढ़ ली हों, बल्कि ज्ञानी तो वह है, जो तन से तपस्वी और मन से मनस्वी हो, जो अनवरत ज्ञान के शोध में संलग्न रहे। ज्ञान के प्रति ज्ञान के अनवेषण-अनुसंधान के प्रति, ज्ञान के शोध के प्रति जन अभिरूचि जगनी चाहिए। जब तक ज्ञान का शोध भारत देश की जन-आकांक्षा नहीं बनेगी, भारत माता गौरवान्वित नहीं होंगी। हाँ, यह सच है कि बीते कुछ वर्षों में राष्ट्र में विश्वविद्यालयों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है। स्वाभाविक है इसी के अनुरूप शोध-छात्र भी बढ़े हैं, परन्तु न तो शोध का ढांचा संवरा है और न ही शोधकार्य की गुणवत्ता में कोई विशेष सुधार हो सका है। यही कारण है कि भारत गणराज्य के माननीय राष्ट्रपति महोदय अपने पिछले कई दीक्षान्त भाषणों में इस पर चिंता जाहिर कर चुके हैं। ऐसे शोध कार्यों से क्या फायदा, जो विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों की अलमारियों में बंद पड़े रहें, जिनकी कोई जनोपयोगिता का जीवन में उपयोगिता न हो। शोधजन अभिरूचि व जन अभियान बनें, शोध कार्य के मानवीय मूल्यों में उत्कृष्टता आए, इसके लिए इस ‘‘शोध-संकलन’’ पुस्तक की कल्पना साकार हुई। इस पुस्तक में उन शोध-छात्रों, विद्वानों के शोध-निष्कर्षों को संकलित किया गया है, जो कि जन-जन में न केवल संवेदनात्मक स्तर पर, सामयिक चुनौतियों से निपटने की दिशा में स्फुरण करेंगी, अपितु समष्टि-हित में विकास मार्ग भी प्रशस्त करेंगी। -डाॅ0 राजकुमार गर्ग
BOOK DETAILS
Publisher | Uttkarsh Prakashan |
ISBN-10 | 9-38-423672-1 |
Number of Pages | 96 |
Publication Year | 2013 |
Language | Hindi |
ISBN-13 | 978-9-38-423672-4 |
Binding | Hardcover |
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