सृष्टि की जननी नारी ( कविता ) प्रकाशन हेतु
सृष्टि की जननी नारी हो। ममतामयी वात्सल्य हो। पूजा - भूषण - मधुर का सत्कार हो। अर्धनारीश्वर साम्य का उपलक्ष हो। तू सरस्वती मां की वाणी हो। कोकिला का पंचम स्वर हो। सभ्यता व संस्कृति का प्रारंभ हो। खेती व बस्ती का शुरुआत हो। तू ही ज्योतिष्टोम का स्वरूप हो। वेदों की इक्कीस प्रकाण्ड विदुषी हो। सोमरस की अनुसरण हो। ब्रह्मज्ञानिनी का अनुहरत हो। मीराबाई जैसे बैरागी हो। लक्ष्मीबाईण जैसे राजकर्ता हो। सावित्री जैसे पतिव्रता नारी हो। लता मंगेशकर जैसे स्वर साम्राज्ञी हो। विश्वसुंदरी की ताज हो। प्रलय का नरसंहार भी हो। तू प्रियवंदा व पतिप्राणा हो। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा हो। **वरुण सिंह गौतम रतनपुर, बेगूसराय, बिहार मो. 6205825551